"रब" ने नवाजा हमें *जिंदगी* देकर;
और हम *“शौहरत”* मांगते रह गये;
जिंदगी गुजार दी शौहरत के पीछे;
फिर जीने की *“मौहलत”* मांगते रह गये।
ये समंदर भी तेरी तरह खुदगर्ज़ निकला,
ज़िंदा थे तो तैरने न दिया. और मर गए तो डूबने न दिया
क्या बात करे इस *दुनिया* की
“हर शख्स के अपने *अफसाने* है”
जो सामने है उसे लोग *बुरा* कहते है,
जिसको देखा नहीं उसे सब *“खुदा”* कहते है…
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